लोकसभा चुनाव बहिष्कार करना ग्रामीणों को पड़ा भारी
(पौड़ी गढ़वाल)
यमकेश्वर/
*ग्रामीणों को लोकसभा चुनाव बहिष्कार करना पड़ा भारी, पुलिस ने काटे दो दर्जन से अधिक ग्रामीणों के चालान*
पौड़ी लोकसभा क्षेत्रांतर्गत यमकेश्वर विधानसभा के कौड़ीया गंगा भोगपुर मल्ला सहित अन्य गांव के ग्रामीणों को अपनी मूलभूत मांगों की मांग कर चुनाव बहिष्कार करना महंगा पड़ गया है। पुलिस प्रशासन ने लगभग 33 ग्रामीणों का लोकसभा चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने की बात कहकर चालान काट दिया है जिसके बाद से ग्रामीणों ने प्रशासन के विरुद्ध भारी नाराजगी जताते हैं शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव बहिष्कार के निर्णय को बरकरार रखा है।
बीते माह गंगा भोगपुर मल्ला सहित यमकेश्वर विधानसभा के कई गावों में मूलभूत सुविधाओं की मांग जोर पकड़ती दिखी है जिसके चलते ग्रामीणों ने राजनेतिक दलों सहित जनप्रतिनिधियों पर गावों की मूलभूत समस्याओं की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए लोकसभा चुनाव में बहिष्कार का ऐलान कर दिया था। जिससे प्रशासन में हड़कंप मच गया। प्रशासन ने गांव पहुंच कर ग्रामीणों से वार्ता करी लेकिन वह विफल रही।
(अधिकारियों से वार्ता करते ग्रामीण/(फाइल फोटो)
उपप्रधान गंगा भोगपुर मल्ला अनिल सिंह नेगी ने बताया कि ग्रामीणों की मांग थी कि ऋषिकेश से यमकेश्वर के डांडा मंडल क्षेत्रों में जाने के लिए बीन नदी पर स्थाई पुल बनाया जाए साथ ही कोडिया से किमसार तक क्षतिग्रस्त हो चुकी सड़क को दुरुस्त कराया जाए जैसी कई मांगे बार बार की जाती रही है लेकिन प्रशासन सहित सरकार ग्रामीणों की समस्या पर ध्यान नहीं दे रही है जिसके चलते ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार का निर्णय लिया है।
चुनाव बहिष्कार के लिए जुटी ग्रामीण महिलाएं/फाइल फोटो)
वहीं ग्रामीण संदीप कुमार और सतेंद्र नेगी ने भी नाराजगी जताते हुए कहा कि दशकों से बसे गांवों को पार्क प्रशासन द्वारा उत्पीड़न किया जा रहा है। वहीं डांडा मंडल के दर्जनों गांवों तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों को टूटी सड़कों पर सफर करना पड़ता है। जब बरसात में बीन नदी उफान आ होती है तब दर्जनों गांवों के ग्रामीणों को गांव में ही कैद होना पड़ जाता है। जब किसी के बीमार हो जाने की बात सामने आती है तब स्थिति और भी विषम हो जाती है और ग्रामीण मरीज को पालकी में बैठाकर अस्पताल ले जाने को विवश हो जाते हैं। जैसी कई समस्याओं से ग्रामीण आज भी जूझ रहे हैं और चुनाव जीतने के बाद गायब होने वाले जनप्रतिनिधि, प्रशासन और सरकार ग्रामीणों की समस्या को भूल जाती है। उन्होंने बताया कि ग्रामीणों ने कई बार मांगे सरकार के सामने रखी लेकिन उनका समाधान नहीं हो पाया जिसको देखते हुए ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार का निर्णय लिया है।